रक्षक भाई
रात काली स्याह थी घर को चली एक कली थी। दिखा एक स्याह साया अभी तो बस दो कदम चली थी। बढ़े धड़कन ज्यो बढे कदम डरी सहमी सी थामे दम चाहे चलना तेज गति से पर बढा रहा साया भी कदम। मुड़ने की हिम्मत ना हुई सिमट कर हुई सुईमुई ज्यो बढ़ रहा अंधेरा गति साये की कम ना हुई। अचानक एक हाथ ने कंधे को छूआ डर से काँपी उसकी काया पीछे मुड़ने को ना हुआ। थमें कदम बढ़ी धड़कन डरते डरते पीछे देखा था वो ही साया सामने खींच गई माथे पर डर की रेखा। तभी बोल उठा साया मत घबरा बहन हु तेरा रक्षक तू पहुँचे सलामत घर तक कुछ कर ना सके भक्षक। दिल को कुछ राहत मिली धड़कन फिर से लौट आई बिरजू अब डर कैसा बहन को जब हर गली में मिले तुझसा भाई। बीजाराम गुगरवाल "बिरजू" स्टेट अवार्डी शिक्षक चारलाई कला