आषाढ़ की बरखा कविता
बीजाराम गुगरवाल
आषाढ की बरखा
उमस से हाल बेहाल
तपन भरी दुपहरी में।
रवि ओज से भू उर तपे
आषाढ़ की दुपहरी में।।
बढ़ने लगे दुपहर से उमस
भीगे खेतिहर स्वेद से।
आस आषाढ़ की मन मे लिये
देखे नभ भूपुत्र उम्मीद से।।
गगन में जब छाये हल्की बदली
चित्र बने नानाप्रकार के।
चित शीतल कर सके मेह
तत भाव जगे नानाप्रकार के।।
सब के मन की शान्ति
गगन में आषाढ़ का बादल।
जमकर जब बरस पड़े
उर वसुंधरा का करे शीतल।।
'बिरजू' ले हल हाथ में
चल पड़ा धरती पुत्र खेत में।
बारह मास की रोजी रोटी
मिल जाए बस निज खेत में।।
बीजाराम गुगरवाल "बिरजू"
स्टेट अवार्डी शिक्षक
चारलाई कल्ला बाड़मेर राजस्थान
9660780535
Nice sir
ReplyDeleteGorjious
ReplyDeleteVery nice sir G
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