मनीषियों के देश की मनीषा

मनीषियों के देश की मनीषा

मनीषा हुई मौन 
देख कर
हैवानों की हैवानियत
दम तोड़ती इंसानियत
सत्ता धारी की हैसियत।
इस देश की धर्म की बुनियाद को
जो बक्श देते है देख जाति बलात्कारी को।

था क्या दोष 
कि वो दलित थी
या फिर बेटी थी
हैवानों ने पार की
हर हद हैवानियत की
फिर भी नहीं खुली
नींद सत्ता धारी की।

गर्दन मरोड़ी
ताकि देख न सके 
फिर मुड़ कर देश को
जहाँ मिलकर लूटते 
सत्तालोलुप वहशी दरिंदे
बेटी की इज्जत को।

टूटी हड्डी रीढ़ की
पर मैं कहता हूं
टूटी है मर्यादा 
तथाकथित मर्यादा पुरुषोत्तम के
उस प्रदेश की 
जहां सुरक्षित नहीं बेटी 
इस भारत महान की।



जीभ कटी एक मनीषा की
हुआ गूंगा पूरा देश
दिखा दी चौथे स्तंभ ने
अपनी ओकात
कि नही करता वो
पैरवी बिन पैसे बिन जात
भले मरे हजारो 
मनीषा जैसे निम्न जात।

ठाकुर, पुलिस सत्ता मीडिया
सब खेल रहे मिलकर डांडिया
जला दी जाती आधी रात को
दलित बेटी की टूटी बिखरी
चीथड़ों में लिपटी लाश को।

बिरजू गुनाह है इस देश में
बेटी बन के पैदा होना
उससे भी बड़ा गुनाह 
दलित घर की बेटी होना।

बीजाराम गुगरवाल "बिरजू"
स्टेट अवार्डी शिक्षक
चारलाई कल्ला बाड़मेर।

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